प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि सच्ची और श्रद्धापूर्ण पूजा-पाठ से कभी दुख नहीं बढ़ते, बल्कि वे कम होते हैं और जीवन में शांति व आनंद आता है. दुख बढ़ने का कारण पूजा-पाठ नहीं, बल्कि उसके पीछे की गलत भावनाएं, अधूरी समझ या अज्ञानता हो सकती है. प्रेमानंद महाराज के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति दिखावे के लिए, स्वार्थवश, या बिना समझे पूजा-पाठ करता है, तो उसे अपेक्षित फल नहीं मिलते और निराशा के कारण दुख बढ़ सकते हैं.
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